जहाँ संत रहते हैं, वहाँ शांति, करुणा और प्रेम का वास होता है।”
“संतों का जीवन एक खुली पुस्तक की तरह होता है, जिससे हर कोई ज्ञान प्राप्त कर सकता है।”
जिला सीतापुर के ब्लॉक रेउसा से लगभग 20 किलोमीटर दूर मुजेहना आश्रम। जो कि स्वामी महराज या मौनी बाबा के नाम से जाना जाता हैं।
यह स्थान बहुत ही अटूट श्रद्धा, व विश्वास का केंद्र हैं। यहाँ पर प्रत्येक सोमवार व शुक्रवार को भक्तो की काफी भीड़ होती हैं। लोगों का मानना हैं यहाँ पर मरीज,कोढ़ी व अन्य पीड़ित लोग आते हैं और अर्जी लगाते हैं । और तपस्वारी मैया उनकी मुरादों को पूरा करती हैं। बुजुर्गों व इस आश्रम के उत्तराधिकारी हरि ओम जी महाराज ने बताया हैं कि, अनंत श्री स्वामी जी महाराज लगभग 1980 में मुजेहना आए थे। नदी के किनारे कुटिया बनाकर रहने लगे थे। स्वामी जी महाराज बहुत ही बड़े त्यागी पुरुष थे। वे 52 वर्षों तक मौन रहे थे वह भक्तों की समस्याएं सुनते थे और उनका समाधान इशारों में या लिखकर बताते थे। और देवाहर बाबा उनके इशारों को ट्रांसलेट करते थे या बताते थे। उन्होंने कपड़ा भी त्याग था कर दिया था, तथा टाट बोरे को पहनते थे।लोगों का कहना है।कि स्वामी जी महाराज काला चश्मा हर वक्त लगाए रहते थे। उनको बिना चश्मे के किसी ने नहीं देखा था। लोगों का मानना है स्वामी जी चमत्कार करते नहीं थे लेकिन हो जाता था। स्वामी जी लगभग 12 वर्षों तक अन्न नहीं खाया। फलो व कच्ची हरी सब्जियों को खाकर को खाकर रहे। बाबा के पास एक मेघनाथ नाम का घोड़ा था। जिस पर बाबा ने कभी भी सवारी नहीं की। वह घोड़ा बाबा के साथ हर समय रहता था। बाबा उसके साथ पैदल चलते थे। उन्होंने 1980 में एक यज्ञ करवाया था जिसमें घोड़े को दान कर दिया था। स्वामी जी महाराज का गायों से काफी लगाव रहता था। इसी स्थान पर उन्होंने बहुत बड़ी गौशाला भी खोल रखी थी। आश्रम को देखभाल रहे व स्थानीय लोगों ने बताया सन 2000 के आसपास स्वामी जी महाराज को नेता सुभाष चंद्र बोस जी का होना दावा किया गया था। कॉफी टीमें बाहर से जांच करने के लिए आई थी। लेकिन बाबा के चमत्कार ने सबको ओझल कर दिया था। मौनी बाबा का अभिवादन शब्द,सत्य ओम, था। आज भी लोग एक दूसरे से मिलने पर,सत्य ओम बोलते हैं। स्वामी जी महाराज तपस्वारी मैया को अपना आराध्य मानते थे। और वह उनकी ही पूजा किया करते थे। अंतिम दिनों में बाबा बीमार पड़ गए। जिससे इनको 15 दिनों तक खैराबाद हॉस्पिटल में भर्ती रखा गया था। उस दौरान भक्तों से संवाद किया था। सन 2003 दिन गुरुवार को बाबा पंचतत्व में विलीन हो गए थे। जिला सीतापुर में ही नहीं बल्कि अन्य कई जिलों में इनके आश्रम है जहां पर भक्त इनके द्वारा दिए गए वचनों पर ही कार्य करते हैं।
मुजेहना आश्रम मे आज भी उनकी कुर्सी मौजूद हैं। जिस पर वह बैठा करते थे।