जनपद सीतापुर मुख्यालय से लगभग 32 किलोमीटर दूर बिसवां कस्बे में एक शिव मन्दिर स्थापित है। इस शिव मंदिर में स्थापित सफेद शिवलिंग, उत्तर भारत की सबसे बडी शिवलिंग बतायी जाती है।
पत्थर शिवाला मंदिर को, बिसवां की आत्मा कहा जाता है। सावन माह में भगवान भोलेनाथ को जलाभिषेक करने के लिए भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है। गांजरी क्षेत्र चहलारी घाट से हजारों की संख्या मे शिवभक्त जल लेकर पैदल यात्रा करते हुए बिसवां आकर भोलेनाथ को जलाभिषेक करते हैं। मंदिर के खम्भों पर चित्ताकर्षक नक्काशी एवं संगमरमर की मूर्तियां श्रद्वालुओं के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई हैं। मंदिर के चारों तरफ लगे हरे भरे पेड़, मंदिर की और शोभा बढ़ा रहे हैं।
मन्दिर के मध्य भाग में स्थापित विशालकाय सफेद शिवलिंग अन्य किसी स्थान पर नहीं दिखते। पत्थर शिवालय वास्तव में पंचायतन मन्दिर है। इसमें पूरब की ओर विष्णु और लक्ष्मी जी की संगमरमर की मूर्ति स्थापित है। वहीं दक्षिण की ओर सूर्य भगवान की मूर्ति, पश्चिम के कोने पर श्रीगणेश की संगमरमर की मूर्ति व उत्तरी कोने पर मां गौरी की संगमरमर की मूर्ति स्थापित है। साथ ही विशालकाय नन्दी की काले संगमरमर की मूर्ति, हनुमान व भैरव बाबा विराजमान हैं। यहां वर्षभर श्रीमद्भागवत,एवं रामचरित मानस, के पाठ सम्पन्न होते रहते हैं। उल्लेखनीय है,कि ठाकुर दरियाव सिंह के वंश में ठाकुर विशेश्वर बक्श सिंह हुए।
यहां आने वाले श्रद्धालुओं का कहना हैं कि बिसवां कस्बे के निकट रामपुरकला के राजा विषम्भर नाथ सिंह को भगवान शिव सपने में आये थे।और सपने में भगवान शिव ने एक मन्दिर के निर्माण के लिए कहा था। जिसके बाद सन 1914 मे राजा विषम्भर नाथ ने प्रयागराज से साठ हजार मन पत्थर मंगवाया था। और इसी पत्थर से एक भव्य मन्दिर का निर्माण कार्य कराया जाने लगा। मंदिर निर्माण के कुछ समय बाद राजा का देहांत हो गया। तो उसके बाद उनकी पत्नी रामकली ने मन्दिर का निर्माण कार्य पूरा कराया।मान्यता है कि इस मंदिर के शिवलिंग को स्थापित कराने के लिए राजस्थान से डेढ़ सौ पंडितों को लाया गया था। जिनके द्वारा मृतुन्जय जाप कर इस विशाल शिवलिंग को स्थापित किया गया था।
इस शिव मंदिर में प्रतिदिन दूर दराज से लोग आते हैं और मान्यता हैं कि यहां पर आने वाले लोगों हर मुराद पूरी होती हैं। मंदिर की देखरेख कर रहे पुजारी का कहना है कि यह मंदिर पत्थर शिवाला के नाम से जाना जाता हैं। मन्दिर पर लगे स्तम्भ पर उकेरे कवित्त में लिखा गया है कि श्री सम्वत् 1900 के ऊपर 76 आयो,मास बैसाख में गुन सुदिन विचारों है। शुभ दिन भृगुवार अरू अक्षय तृतीया के दिवस प्रात: समय विप्रन ने वेद उच्चारो है। लक्ष्मी नारायण, सूर्य, गिरजा, गणपति समेत भक्तन सदा शिव आनन्द सम्भारो है। कहत दीनदयाल ऐसो परमानन्द जगदाधार। विश्वेश्वर नाथ वन मन्दिर मे पधारो है।
यह पत्थर शिवाला मंदिर अपनी भव्यता, स्थापत्य, कला और विशाल शिवलिंग के कारण श्रद्धालुओं की विशेष आस्था और श्रद्धा का केन्द्र बना हुआ है।
आज हम एक ऐसे शिवालय के बारे मे बात करेंगे। जो साठ हजार मन संगमरमर पत्थरों से बना हैं। जिसे डेढ़ सौ पंडितों के द्वारा मृतुन्जय जाप कर इस विशाल शिवलिंग को स्थापित किया गया था। गांजर क्षेत्र का आत्मा कहा जाने वाला शिवालय।